‘बलिदान केवल बलिदान’ – चित्तौड़ की स्वतंत्रता देवी बलिदान चाहती है। बादल उमड़े थे, बिजलियाँ कड़की थीं और घोर अंधकार छा गया था। अपवित्रता पवित्रता पर कब्जा करना चाहती थी और अनाचार आचार और...
संग्राम-घोर! न्याय और अन्याय का! मनुष्य के सर्वोच्च भावों और उसके सबसे नीचे भावों का। पशुता मनुष्यता के मुकाबले में है। एक ओर विकराल शक्ति और दूसरी ओर सौम्य शान्ति! एक ओर पशु-बल और...
1792 के पहले यूरोप तथा अमेरिका में गुलामों का निर्बाध व्यापार होता था। हब्शियों और नीग्रो लोगों को पकड़-पकड़कर यूरोपियन व्यापारी यूरोप तथा अमेरिका के रईसों और जमींदारों के हाथ बेचा करते थे। इन...
गहरे विश्राम के पश्चात् ‘प्रभा’ आज फिर कार्यक्षेत्र में पर्दापण करती है। उसका पहला वायुमंडल अत्यंत उच्च और सात्विक था। इसकी कल्पना तक हृदय को शुद्ध और ओजपूर्ण भावनाओं की ओर अग्रसर करती है।...
जिन्हें काम करना है, वे गाँवों की तरफ मुड़ें। शहरों में काम हो चुका। शहर के लोगों को उतनी तकलीफ भी नहीं। शहरों में देश की सच्ची आबादी रहती भी नहीं। देश भर में...
जी खोल कर हँसना-बोलना और खुशी मनाना उन्हीं लोगों का काम है जिनके शरीर भले और मन चंगे हों। लेकिन जिनके ऊपर विपत्ति और पतन की घनघोर घटा छाई हो, जिनका घर और बाहर...
कानपुर कांग्रेस की समाप्ति के बाद से युक्तप्रांत में, हिंदू सभा द्वारा व्यवस्थापिका सभाओं के आगामी चुनाव लड़े जाने की बात फिर जोर पकड़ रही है। अलीगढ़ की मुस्लिम लीग में मुसलमान नेताओं ने...
अंधकारमय निशा में दूर-दूर तक शुभ्र ज्योत्सना छिटकाने वाली दीपावली की दीपमाला! तेरा और तेरी रश्मियों का स्वागत। स्वागत इसलिये नहीं कि तेरी श्री, श्री की श्री है, संपन्नता की द्योतक और वैभव का...
वर्तमान युग में बड़े बल और वेग के साथ संसार के सामने जनसत्ता की समस्या उपस्थित की है। एक समय था कि लाखों और करोड़ों आदमियों पर केवल एक आदमी की मनमानी हुकूमत चलती...
पतन और अभ्युदय के टेढ़े-मेढ़े मार्ग को तै करके, सदा आगे बढ़ने वाले राष्ट्रों के जीवन काल में एक युग ऐसा आता है, जिसके प्रभाव से एक पथगामिनी कार्य-धारा विभिन्न दिशाओं में बहने लगती...
हिंदी में पत्रकार-कला के संबंध में कुछ अच्छी पुस्तकों के होने की बहुत आवश्यकता है। मेरे मित्र पंडित विष्णुदत्त शुक्ल ने इस पुस्तक को लिखकर एक आवश्यक काम किया है। शुक्ल जी सिद्धहस्त पत्रकार...
श्रीमन् स्वागताध्यक्ष महोदय, देवियो और सज्जनो, इस स्थान से आपको संबोधित करते हुए मैं अपनी दीनता के भार से दबा-सा जा रहा हूँ। जिन साहित्य के महारथियों से इस स्थान की शोक्षा बढ़ चुकी...
वह आँधी सब जगह आयी, रूस, जर्मनी, आस्ट्रिया, हंगरी, टर्की, चीन सब देशों के वन-उपवन उसके झोंके से कंपित हो उठे। प्रजातंत्र की वह आँधी कई देशों में आयी और उसने जनता की छाती...
संसार की स्वाधीनता के विकास का इतिहास उस अमूल्य रक्त से लिखा हुआ है, जिसे संसार के भिन्न-भिन्न भाग के कर्तव्यशील वीर पुरुषों ने स्वत्वों की रणभूमि में करोड़ों मूक और निर्बल प्राणियों की...