‘मैंने क्या-क्या नहीं किया? किस-किस दर की ठोकरें नहीं खाईं? किस-किसके आगे मस्तक नहीं झुकाया?’ मेरे राम! आपको न पहचानने के सबब ‘जब जनमि- जनमि जग, दुख दसहू दिसि पायो।’ आशा के जाल में...
एक चरवाहा लड़का गाँव के जरा दूर पहाड़ी पर भेड़ें ले जाया करता था। उसने मजाक करने और गाँववालों पर चड्ढी गाँठने की सोची। दौड़ता हुआ गाँव के अंदर आया और चिल्लाया, ”भेड़िया, भेड़िया!...
प्रातःकाल था। आषाढ़ का पहला दौंगड़ा निकल गया था। कीट-पतंग चारों तरफ रेंगते दिखायी देते थे। तिलोत्तमा ने वाटिका की ओर देखा तो वृक्ष और पौधे ऐसे निखर गये थे जैसे साबुन से मैले...
नवल और विमल दोनों बात करते हुए टहल रहे थे। विमल ने कहा- ”साहित्य-सेवा भी एक व्यसन है।” ”नहीं मित्र! यह तो विश्व भर की एक मौन सेवा-समिति का सदस्य होना है।” ...
चन्द ही महीने पहले बिहार के विदित आचार्य श्री शिवपूजन सहायजी (पद्मभूषण), आचार्य नलिन विलोचनजी शर्मा तथा श्री जैनेन्द्र कुमारजी मेरे यहाँ कृपया पधारे थे। साथ में बिहार के दो-तीन तरुण और भी थे।...
बेचू धोबी को अपने गाँव और घर से उतना ही प्रेम था, जितना प्रत्येक मनुष्य को होता है। उसे रूखी-सूखी और आधे पेट खाकर भी अपना गाँव समग्र संसार से प्यारा था। यदि उसे...
‘अरे बेचन! न जाने कौन आया था— उर्दजी, उर्दजी, पुकार रहा था!’ ये शब्द मेरी दिवंगता जननी, काशी में जन्मी जयकली के हैं जिन्हें मैं ‘आई’ पुकारा करता था। यू.पी. में माता या माई...
उसके जाल में सीपियाँ उलझ गयी थीं। जग्गैया से उसने कहा-”इसे फैलाती हूँ, तू सुलझा दे।” जग्गैया ने कहा-”मैं क्या तेरा नौकर हूँ?” कामैया ने तिनककर अपने खेलने का छोटा-सा जाल और भी...
रामचन्द्र भगवानद्य सरयू नदी के किनारे पैदा हुए थे, मैं पैदा हुआ गंगा सुरसरि के किनारे। मुझे सरयू उतनी अच्छी नहीं लगतीं जितनी नर, नाग, विबुध बन्दनी गंगा। रामचन्द्र भगवान् अयोध्या नगरी में पैदा...
‘तारा ने बारह वर्ष दुर्गा की तपस्या की। न पलंग पर सोयी, न केशो को सँवारा और न नेत्रों में सुर्मा लगाया। पृथ्वी पर सोती, गेरुआ वस्त्र पहनती और रूखी रोटियाँ खाती। उसका मुख...
यह सन् 1910 ई. है। और यह नगर? इसका नाम है मिण्टगुमरी! मिण्टगुमरी? यह नगर कहाँ है रे बाबा! यह नगर इस समय पश्चिमी पाकिस्तान में है, लेकिन जब की बात लिखी जा रही...
तामसी रजनी के हृदय में नक्षत्र जगमगा रहे थे। शीतल पवन की चादर उन्हें ढँक लेना चाहती थी, परन्तु वे निविड़ अन्धकार को भेदकर निकल आये थे, फिर यह झीना आवरण क्या था! बीहड़,...
महन्त भागवतदास ‘कानियाँ’ की नागा-जमात के साथ मैंने पंजाब और नार्थवेस्ट फ्रण्टियर प्राविंस का लीला-भ्रमण किया। अमृतसर, लाहौर, सरगोधा मण्डी, चूहड़ काणा, पिंड दादन खाँ, मिण्टगुमरी, कोहाट और बन्नू तक रामलीलाओं में अपने राम...
बचपन में मेरे मुहल्ले में दो हस्तियाँ ऐसी थीं जिनका कमोबेश प्रभाव मुझ पर सारे जीवन रहा। उनमें एक थे भानुप्रताप तिवारी (जब मैं सात बरस का था, वह साठ के रहे होंगे), दूसरे...
पुरुषों और स्त्रियों में बड़ा अन्तर है, तुम लोगों का हृदय शीशे की तरह कठोर होता है और हमारा हृदय नरम, वह विरह की आँच नहीं सह सकता।’ ‘शीशा ठेस लगते ही टूट जाता...