स्वयं बने गोपाल

आत्मकथा – भानुप्रताप तिवारी – (लेखक – पांडेय बेचन शर्मा उग्र)

बचपन में मेरे मुहल्‍ले में दो हस्तियाँ ऐसी थीं जिनका कमोबेश प्रभाव मुझ पर सारे जीवन रहा। उनमें एक थे भानुप्रताप तिवारी (जब मैं सात बरस का था, वह साठ के रहे होंगे), दूसरे...

कहानी – धर्मसंकट – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

पुरुषों और स्त्रियों में बड़ा अन्तर है, तुम लोगों का हृदय शीशे की तरह कठोर होता है और हमारा हृदय नरम, वह विरह की आँच नहीं सह सकता।’ ‘शीशा ठेस लगते ही टूट जाता...

आत्मकथा – बच्चा महाराज – (लेखक – पांडेय बेचन शर्मा उग्र)

‘बाबू!’ जवान लड़के ने वृद्ध, धनिक और पुत्रवत्‍सल पिता को सम्‍बोधित किया। ‘बचवा… !’ ‘मिर्ज़ापुर में पुलिस सब-इन्‍स्‍पेक्‍टर की नौकरी मेरा एक दोस्‍त, जो कि पुलिस में है, मुझे दिलाने को तैयार है। क्‍या...

कहानी – सहयोग (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

मनोरमा, एक भूल से सचेत होकर जब तक उसे सुधारने में लगती है, तब तक उसकी दूसरी भूल उसे अपनी मनुष्यता पर ही सन्देह दिलाने लगती है। प्रतिदिन प्रतिक्षण भूल की अविच्छिन्न शृंखला मानव-जीवन...

कहानी – बलिदान – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

मनुष्य की आर्थिक अवस्था का सबसे ज्यादा असर उसके नाम पर पड़ता है। मौजे बेला के मँगरू ठाकुर जब से कान्सटेबल हो गए हैं, इनका नाम मंगलसिंह हो गया है। अब उन्हें कोई मंगरू...

आत्मकथा – पं. जगन्नाथ पाँडे – (लेखक – पांडेय बेचन शर्मा उग्र)

अब मैं चौदह साल का हो चला था कि रामलीला-मण्‍डली से छुट्टी मनाने बड़़े भाई के संग चुनार आया। इस बार अलीगढ़ में किसी बात पर महन्‍त राममनोहरदास और मेरे बड़े भाई में वाद-विवाद...

कहानी – रमला (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

साजन के मन में नित्य वसन्त था। वही वसन्त जो उत्साह और उदासी का समझौता कराता, वह जीवन के उत्साह से कभी विरत नहीं, न-जाने कौन-सी आशा की लता उसके मन में कली लेती...

आत्मकथा – लाला भगवान ‘दीन’ – (लेखक – पांडेय बेचन शर्मा उग्र)

अरसा हुआ वाराणसी के दैनिक अखबार ‘आज’ में आदरणीय पं. श्रीकृष्‍णदत्तजी पालीवाल की चर्चा करते हुए मैंने लिखा था कि मेरे पाँच गुरु हैं, जिनमें एक पालीवालजी भी हैं। उन पाँचों में मैं अपने...

कहानी – ज्वालामुखी – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

डिग्री लेने के बाद मैं नित्य लाइब्रेरी जाया करता। पत्रों या किताबों का अवलोकन करने के लिए नहीं। किताबों को तो मैंने न छूने की कसम खा ली थी। जिस दिन गजट में अपना...

आत्मकथा – पं. बाबूराव विष्णु पराड़कर’ – (लेखक – पांडेय बेचन शर्मा उग्र)

यह चर्चा सन् 1920 और 21 ई. के बीच की होगी। यह सब मैं स्‍मरण से लिख रहा हूँ, क्‍योंकि डायरी रखने की आदत मैंने नहीं पाली, इस ख़ौफ़ से कि कहीं राजा हरिश्‍चन्‍द्र...

कहानी – करुणा की विजय (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

सामने सन्ध्या-धूसरति जल की एक चादर बिछी है। उसके बाद बालू की बेला है, उसमें अठखेलियाँ करके लहरों ने सीढ़ी बना दी है। कौतुक यह है कि उस पर भी हरी-हरी दूब जम गयी...

आत्मकथा – बाबू शिवप्रसाद गुप्त’ – (लेखक – पांडेय बेचन शर्मा उग्र)

तो? तो क्‍या बाबू शिवप्रसाद गुप्‍त को भी स्‍वर्ग के फाटक से नहीं गुज़रने दिया गया? बाइबिल में लिखा है : सुई के सूराख़ से ऊँट निकल जाए — भले, परन्‍तु धनवान स्‍वर्ग के...

कहानी – सच्चाई का उपहार – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

तहसीली मदरसा बराँव के प्रथमाध्यापक मुंशी भवानीसहाय को बागवानी का कुछ व्यसन था। क्यारियों में भाँति-भाँति के फूल और पत्तियाँ लगा रखी थीं। दरवाजों पर लताएँ चढ़ा दी थीं। इससे मदरसे की शोभा अधिक...

आत्मकथा – पं. कमलापति त्रिपाठी – (लेखक – पांडेय बेचन शर्मा उग्र)

सो, तुम जीते – कमला, और बहुत ख़ूब जीते। अभी गत कल ही की तो बात है। तुम प्रादेशिक साहित्‍य-सम्‍मेलन के अध्‍यक्ष बने थे (सन् 1948-49)। उन्‍हीं दिनों लखनऊ में मैं भी मोहक मिनिस्‍टर...

कहानी – देवरथ – (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

दो-तीन रेखाएँ भाल पर, काली पुतलियों के समीप मोटी और काली बरौनियों का घेरा, घनी आपस में मिली रहने वाली भवें और नासा-पुट के नीचे हलकी-हलकी हरियाली उस तापसी के गोरे मुँह पर सबल...

आत्मकथा – बनारस और कलकत्ता – (लेखक – पांडेय बेचन शर्मा उग्र)

जब मैं चुनार से बनारस पढ़ने आया तब मन-ही-मन अपने सामाजिक स्‍टेटस पर बड़ा ही लज्जित-जैसा महसूस करता था। गुणहीन, ग़रीब, गर्हित चरित्र-लेकिन साल-दो साल रहकर जब काशी में कलियुगी रंग देखे तब दुखदायी...